फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी अचानक एक ऐसे तूफान के बीच फंस गई है, जिसमें फंड डायवर्जन, आतंकवादी जुड़ाव और शिक्षा की मान्यता का सवाल एक साथ टकरा रहे हैं। लगभग 1,000 MBBS छात्रों के भविष्य अब एक अज्ञात के आगे खड़े हैं — उनके पिता-माता ने लाखों रुपये फीस के रूप में दिए हैं, अब उनका सवाल है: क्या यह कॉलेज बंद हो जाएगा? और अगर हां, तो उनके डिग्री का क्या होगा?
कैसे शुरू हुआ यह संकट?
2025 के अंत तक, एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट (ED) ने अल-फलाह ग्रुप के खिलाफ एक गहन जांच शुरू कर दी है। जांच का मुख्य आरोप है कि यूनिवर्सिटी ने छात्रों की फीस और सरकारी ग्रांट के पैसों को अनियमित तरीके से अलग-अलग खातों में भेजा। एक आंतरिक ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, 2020 से 2024 तक कम से कम ₹42 करोड़ के फंड अज्ञात लेनदेन में खो गए। यही नहीं, जांचकर्ताओं को एक और चौंकाने वाला खुलासा हुआ — मिर्जा शादाब बेग, जिसे इंडियन मुजाहिदीन के साथ जोड़ा जा रहा है, ने 2007 में इसी यूनिवर्सिटी से बीटेक किया था।
और यहां तक कि दिल्ली ब्लास्ट के बाद भी, जांच में सामने आया कि अल-फलाह यूनिवर्सिटी ने 2007-08 में आतंकवादी हमलों के लिए ₹26 लाख जुटाए थे। एक वित्तीय लेनदेन रिकॉर्ड में एक अज्ञात व्यक्ति ने यूनिवर्सिटी के बैंक खाते में ₹15 लाख जमा किए, जिसका उद्देश्य "शिक्षा के लिए" था। लेकिन बाद में पता चला कि वह रकम आतंकी नेटवर्क के लिए उपयोग की गई।
डॉक्टर बनाकर आतंकी बनाया गया?
यहां की सबसे डरावनी बात यह है कि आतंकी गतिविधियों में शामिल कुछ लोग डॉक्टर थे। डॉ. उमर और डॉ. मुजम्मिल — दोनों ही अल-फलाह यूनिवर्सिटी के एलिट ग्रैजुएट्स — एक टेरर मॉड्यूल के हिस्से थे, जिसमें कश्मीर के युवाओं को ब्रेनवॉश किया जाता था। उन्हें दुनिया भर में इस्लामिक नस्लीय अत्याचार के झूठे वीडियो दिखाए जाते थे। एक सूत्र ने कहा, "वे डॉक्टर बने, ताकि वे अस्पतालों में जाकर लोगों को विषैला दवा दे सकें।" यही नहीं, दोनों के बीच ₹40 लाख के फंड विवाद ने टेरर मॉड्यूल में गहरा टकराव पैदा कर दिया, जिसके बाद एक ने दूसरे को जांच में बताया।
छात्रों का भविष्य: खुशहाल सिंह की चिंता
चंडीगढ़ के खुशहाल सिंह अपने बेटे के MBBS चौथे वर्ष के बारे में सोचकर रातों को नींद उड़ा रहे हैं। उन्होंने कहा, "हमने अपना सारा बचत इसी कॉलेज में लगा दिया। अब ये सब खबरें सुनकर लग रहा है कि हमारा बेटा एक डिग्री लेकर निकलेगा, जिसे कोई स्वीकार नहीं करेगा।" उनकी बात को अनेक अभिभावक सहमत हैं। एक बैठक में एक मां ने रोते हुए कहा, "मैंने अपनी जमीन बेच दी। अब क्या करूं?"
यूनिवर्सिटी के प्रतिनिधि रजनीश ने अभिभावकों को आश्वासन दिया: "हमारे पास NAAC और NMC की मान्यता है। कोई संकट नहीं है।" लेकिन यह बात अभिभावकों को नहीं बचा रही। क्योंकि नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) ने पहले ही एक शो-कॉज नोटिस जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि यूनिवर्सिटी के लैब्स, फैकल्टी और क्लिनिकल ट्रेनिंग के लिए जरूरी मानकों का उल्लंघन हुआ है।
माइनॉरिटी स्टेटस भी खतरे में
यही नहीं, अल-फलाह यूनिवर्सिटी का माइनॉरिटी स्टेटस भी अब सवाल के नीचे है। सरकार ने एक शो-कॉज नोटिस जारी किया है, जिसमें यह पूछा गया है कि क्या यह संस्थान वास्तव में "मुस्लिम समुदाय के लिए" है, या यह बस एक वित्तीय फ्रॉड का ढांचा है? अगर इसका माइनॉरिटी स्टेटस रद्द हुआ, तो यह अपनी फीस संरचना, रिजर्वेशन और सरकारी फंडिंग का भी दावा खो देगी।
साथ ही, नेशनल असेसमेंट एंड अक्रेडिटेशन काउंसिल (NAAC) ने भी एक नोटिस जारी किया है, जिसमें यूनिवर्सिटी के शिक्षण मानकों, अनुसंधान उत्पादन और छात्र समर्थन सेवाओं पर सवाल उठाए गए हैं। एक एनएएसी अधिकारी ने बताया, "हमारे ऑडिटर्स ने देखा कि लैब में जरूरी उपकरण नहीं हैं। एक जगह पर बेड नहीं, बल्कि बैग्स रखे हुए थे।"
अगले कदम: क्या होगा अगले 60 दिनों में?
अगले 60 दिनों में, NMC और ED की रिपोर्ट्स सामने आएंगी। अगर NMC मान्यता रद्द कर देता है, तो इस यूनिवर्सिटी के छात्र अपने डिग्री के लिए एमसीआई या एनएमसी के अन्य कॉलेजों में स्थानांतरण की आवश्यकता महसूस करेंगे। लेकिन यह आसान नहीं है। क्योंकि अधिकांश अन्य कॉलेज अपनी सीटों में बढ़ोत्तरी नहीं कर रहे।
एक शिक्षा नीति विशेषज्ञ ने कहा, "अगर यह यूनिवर्सिटी बंद हो गई, तो 1,000 छात्रों में से 700 अपनी डिग्री खो देंगे। उनमें से 400 विदेश जाने की कोशिश करेंगे — लेकिन वहां भी उनकी डिग्री मान्यता नहीं होगी।"
क्या होगा अगर यह यूनिवर्सिटी बंद हो जाए?
अगर यह संस्थान बंद हो जाता है, तो इसका असर केवल छात्रों तक ही सीमित नहीं होगा। लगभग 200 फैकल्टी सदस्य बेरोजगार हो जाएंगे। एक अस्पताल, जो यूनिवर्सिटी के साथ जुड़ा है, वह भी बंद हो जाएगा — जिसमें हर दिन 300 से अधिक गरीब मरीज आते हैं। यह एक शिक्षा का संकट नहीं, बल्कि एक सामाजिक आपातकाल होगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
अल-फलाह यूनिवर्सिटी के MBBS छात्रों को अब क्या करना चाहिए?
छात्रों को तुरंत अपने डिग्री के लिए NMC की वेबसाइट पर अपने कोर्स की मान्यता की जांच करनी चाहिए। अगर मान्यता रद्द हो गई, तो वे अन्य NMC-मान्यता प्राप्त कॉलेज में स्थानांतरण के लिए आवेदन कर सकते हैं। हालांकि, यह प्रक्रिया जटिल है और सीटें सीमित हैं। कुछ राज्य सरकारें अभी तक कोई विशेष योजना नहीं बना रही हैं।
क्या यूनिवर्सिटी के बंद होने के बाद फीस वापस मिलेगी?
अभी तक कोई वापसी की योजना नहीं है। ED की जांच अभी चल रही है, और फंड कहां गए, यह अभी अज्ञात है। अगर कोई अवैध लेनदेन पकड़ा गया, तो उसका उपयोग छात्रों को वापस देने के लिए किया जा सकता है — लेकिन यह एक लंबी कानूनी प्रक्रिया होगी। अभिभावकों को अभी न्यायालय में अपील करने की सलाह दी जा रही है।
क्या यूनिवर्सिटी के डिग्री को विदेश में मान्यता मिलेगी?
नहीं। अगर NMC मान्यता रद्द कर देता है, तो विदेशी विश्वविद्यालय भी इस डिग्री को स्वीकार नहीं करेंगे। यूके, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों में MBBS के लिए अलग से एग्जाम देना जरूरी है। अल-फलाह की डिग्री वहां अमान्य होगी।
इस मामले में कौन जिम्मेदार है?
जिम्मेदारी तीन स्तरों पर है: यूनिवर्सिटी के प्रबंधन ने फंड का दुरुपयोग किया, शिक्षा नियामकों ने नियमित जांच नहीं की, और सरकार ने माइनॉरिटी स्टेटस के तहत बेकार की फंडिंग दी। एक न्यायाधीश ने इसे "शिक्षा का सबसे बड़ा धोखा" कहा है।
अगर यूनिवर्सिटी बंद हो गई, तो छात्रों के लिए सरकार क्या करेगी?
अभी तक कोई आधिकारिक योजना नहीं है। हालांकि, शिक्षा मंत्रालय ने एक टीम बनाई है, जो छात्रों के स्थानांतरण की संभावनाओं की जांच कर रही है। लेकिन यह एक तेज़ प्रक्रिया नहीं होगी। अभिभावकों को अपने बच्चों के लिए विकल्प तलाशने चाहिए — नहीं तो वे एक वर्ष खो सकते हैं।
क्या यह घटना अन्य निजी मेडिकल कॉलेजों के लिए चेतावनी है?
बिल्कुल। देश भर में 300 से अधिक निजी मेडिकल कॉलेज हैं, जिनमें से कई की बुनियादी सुविधाएं और शिक्षण गुणवत्ता संदेहास्पद है। अल-फलाह का मामला एक चेतावनी है: जब लाभ के लिए शिक्षा को बेचा जाए, तो यह न केवल छात्रों को बर्बाद करता है, बल्कि समाज को भी खतरे में डाल देता है।